
विश्व इस समय कोरोनावायरस महामारी के दौरान आर्थिक हानियों से उबरने की कोशिश में था। लेकिन फरवरी माह में, रूस ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की जिसके कारण पूरी दुनिया में चिंता फैल गई है। कई देशों ने इस पर सीधे विरोध प्रकट किया है।
इसके अलावा, कई कंपनियों और एजेंसियों ने रूस में अपनी सेवाओं को बंद करके रूस को मजबूर करने की पूरी कोशिश की है। लेकिन युद्ध अभी भी जारी है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव विश्व की अर्थव्यवस्था पर देखा जा रहा है।
तेल के महंगाई, स्टॉक मार्केट के गिरावट से हम यह समझ सकते हैं कि यदि युद्ध पर रोक नहीं लगाई जाती है, तो भविष्य में संकट और बढ़ सकता है। इस लेख में, हम आपको बताएंगे कि यह युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कैसा प्रभाव डाल रहा है।रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध के प्रभाव से विश्व अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। पहले ही वैश्विक महामारी से उबरने की कोशिशों के बावजूद, यह युद्ध विश्व अर्थव्यवस्था को और अधिक कमजोर बना रहा है।
इस युद्ध के कारण तेल के दाम में वृद्धि हुई है और इससे प्रतिक्रियाएं आई हैं। रूस विदेशी आपूर्ति देश होने के कारण, विशेष रूप से यूरोपीय देशों में तेल की कमी हो गई है। इससे तेल के दाम बढ़ गए हैं, जो वैश्विक ऊर्जा बाजार में व्यापक प्रभाव डाल रहा है।

यूक्रेन और रूस के बीच हालिया युद्ध से विश्व अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है। इसका खासकर यूरोपीय देशों पर प्रभाव हो रहा है, क्योंकि कई यूरोपीय देश रूसी ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भर हैं। इसके अलावा, कुछ महत्वपूर्ण पाइपलाइन से गैस की आपूर्ति होती है, जिसमें रूस एक महत्वपूर्ण आपूर्ति कर्ता है। यदि युद्ध समाप्त होता है, तो यह संभावना है कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के चलते यूरोपीय देशों के लिए गैस आयात करना मुश्किल हो सकता है।
इसके अतिरिक्त, पिछले हफ्ते तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है क्योंकि रूसी बैंकों पर प्रतिबंधों के कारण तेल की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई है। यहां तक कि लेख लिखने के समय तक, तेल का मूल्य प्रति बैरल 105 डॉलर है। रूस दिन में 6.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल का निर्यात करता है और इसका प्राकृतिक गैस उत्पादन में उसका 17% हिस्सेदार है।
यूक्रेन और रूस के बीच के विवाद के पीछे मुख्य कारण राष्ट्रीय, आर्थिक, और भौगोलिक मसले हैं। यूक्रेन ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से यूरोपीय संघ की ओर ध्यान दिया है और रूस की गहरी संबंधों को कम करने का प्रयास किया है। रूस, अपने पूर्व सदस्य देश को यूरोपीय संघ के अधिकारों और प्रभाव की बढ़ती हुई दबाव के लिए दोषी ठहरा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, यूरोपीय देश और अन्य देश रूस से अपनी ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति पर अधिक निर्भर हो गए हैं, जो उन्हें आर्थिक और सुरक्षा के मामलों में वंचित कर सकता है।
यातायात हुआ प्रभावित

युद्ध के चलते व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों पर सीमाओं और प्रतिबंधों का असर पड़ सकता है। यूक्रेन और रूस के बीच के सीमा पर तनाव के कारण व्यापारिक गतिविधियों को नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। नियमित व्यापारी और वाणिज्यिक ट्रांजिट गतिविधियों को रोकने के लिए सीमाओं पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच के व्यापार में ठप्पा आ सकता है।
इस युद्ध में यातायात की ओर भी समस्याएं पैदा होने की संभावना है। इसमें मुख्य रूप से समुद्री शिपिंग और रेल भाड़ा शामिल हैं। एशिया और यूरोप के बीच कुल माल ढुलाई पर इसका असर होने वाला है। यूरोप के कई देश व्यापार के लिए समुद्री जहाजों और रेल नेटवर्क का प्रयोग करते हैं। लेकिन युद्ध इसमें प्रभाव डालेगा, जब रेल और जहाजों के ढुलाई भाड़े में इजाफा होगा। लिथुआनिया जैसे देश रूस के खिलाफ प्रतिबंधों से अपने रेल यातायात को बुरी तरह प्रभावित होने की उम्मीद कर रहे हैं।
सप्लाई चैन में असर

युद्ध के परिणामस्वरूप, रूस और यूक्रेन के बीच के व्यापारिक संबंधों में विपरीत प्रभाव दिख रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव सप्लाई चैन में दिख रहा है। पहले, इस क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियाँ सक्रिय थीं और आपूर्ति चैन अच्छी तरह से काम कर रही थी। लेकिन अब युद्ध के कारण कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
पहली समस्या तेल की कीमतों में इजाफा है। युद्ध के कारण, तेल के आपूर्ति में रुकावट हो रही है और इसके परिणामस्वरूप तेल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। यह उत्पादकों को महंगा पड़ा रहा है और उनके लाभ को कम कर रहा है।
खाने योग्य तेल और अन्य सामग्री की कमी

यूक्रेन और रूस के बीच हो रहे युद्ध का विश्व की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव होने की संभावना है। इसमें एक चिंता का विषय है खाने योग्य तेल और अन्य प्रमुख सामग्री की कमी की। यूक्रेन एकमात्र उत्पादक है जो सूरजमुखी तेल का निर्यात करता है और इसका लगभग आधा हिस्सा विश्व भर में आवश्यकताओं को पूरा करता है। यदि युद्ध जारी रहता है तो उत्पादन में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिसका परिणामस्वरूप निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा।
भारत की कच्चे खाद्य तेल की 70 प्रतिशत से अधिक मांग आयात के माध्यम से पूरी की जाती है। यूक्रेन और रूस द्वारा उत्पन्न होने वाले आहारिक उत्पादों का 30 प्रतिशत गेहूं के निर्यात, 19 प्रतिशत मक्के के निर्यात और 80 प्रतिशत सूरजमुखी तेल के निर्यात करता है। ये खाद्य पदार्थ विभिन्न छोटे और गरीब देशों में निर्मित होते हैं और उन्हें विश्व बाजार में बेचा जाता है।
ऑटो सेक्टर का बुरा हाल

यूक्रेन में स्थित इन कारखानों का बंद होने के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर में भारी दिक्कतें हो सकती हैं। इन कारखानों की बंदिश इसलिए हो सकती है क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण विपणन संबंधी मुसीबतें उत्पन्न हो सकती हैं। यूक्रेन से कई ऑटोमोबाइल कंपनियों ने अपने उत्पादन कारखानों को बंद करने की सूचना दी है, जिससे ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होगी।
यह खबर खास रूस के लिए भी परेशानी का सबब बनती है। रूस एक महत्वपूर्ण ऑटोमोबाइल उत्पादक देश है, और यूक्रेन में कारखानों के बंद होने से उन्हें उत्पादन और आपूर्ति की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। यदि रूस अपने ऑटोमोबाइल उत्पादन में कमी होती है, तो उनकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। इसके साथ ही, युद्ध के कारण व्यापारिक संबंधों में भी बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो रूसी ऑटोमोबाइल निर्माताओं को विदेशी बाजारों में अपने उत्पादों की बिक्री में परेशानी पहुंचा सकती है।
ऑटोमोबाइल सेक्टर के इस संकट से अधिकांश यूक्रेन और रूसी नागरिकों को भी प्रभावित होने की संभावना है। यदि कारखानों की बंदिश के कारण नौकरियां खतरे में हों, तो यह लोगों के आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा असर डाल सकता है। इसके साथ ही, ऑटोमोबाइल उत्पादन में कमी के कारण वाहनों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जिससे लोगों को अधिक पैसे खर्च करने की जरूरत पड़ सकती है।

वर्तमान में रूस और यूक्रेन के बीच तनावपूर्ण स्थिति के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। यह युद्ध दोनों देशों के साथ ही दूसरे देशों को भी प्रभावित कर रहा है और इसके असर का विस्तार अभी तक दिखाई दे रहा है। इस लेख में हम देखेंगे कि यह युद्ध किस तरह से अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है और इससे कैसे निपटा जा सकता है।
एक मुद्दा जो इस युद्ध के परिणामस्वरूप व्यापारिक दुनिया में उठा है, वह है SWIFT (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication) के द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा लेनदेन सिस्टम का बंद होना। यह सिस्टम विदेशी मुद्रा के लेनदेन को सुगम और सुरक्षित बनाने में मदद करता है। रूस द्वारा इस सिस्टम के बंद हो जाने से अन्य देशों के व्यापारिक संबंध भी प्रभावित हुए हैं। बिना SWIFT के, विदेशी देशों के बीच व्यापार करना कठिन हो गया है और यह व्यापार कम होने का कारण बन रहा है।